रीटेल चैन दिग्गज सेंसबरी ने लिक्विड नाइट्रोजन कूल्ड रेफ्रिजरेटेड ट्रक्स का परीक्षण किया
Published On Jun 22, 2016
यूके (युनाइटेड किंग्डम) की अग्रीण सूपर मार्केट रीटेल चैन ने एक बहुमूल्य पहल करते हुए लिक्विड नाइट्रोजन को अपने रेफ्रिजरेटेड ट्रक्स में कूलेंट के तौर पर इस्तेमाल करने का फ़ैसला लिया है। इस बड़े कदम का मकसद है पर्यावरण में कार्बन एमिशन व अन्य प्रदूषकों की मात्रा को कम करना, जो की आम तौर पर इसके कोल्ड स्टोरेज ट्रक्स उत्पन्न करते हैं। कंपनी ने हाल ही में इसका परीक्षण अपने रेफ्रिजरेटेड ट्रक्स में डियरमेन के लिक्विड नाइट्रोजनयुक्त इंजन के साथ किया। हालाँकि, यह परीक्षण सिर्फ़ कूलिंग यूनिट के लिए ही किया गया था। इसका ट्रायल "क्लीन कोल्ड" के नाम से तीन महीनों तक चलेगा। जो रूट इस ट्रायल के लिए सुझाया गया है वह शुरू होगा कंपनी के वल्थम पॉइंट वेरहाउस से तथा समाप्त होगा लंडन स्थित लोकल स्टोर्स पर।
इन ट्रक्स को नियमित डीज़ल इंजनों से लैस किया जाएगा, और लीक्विड नाइट्रोजन का इस्तेमाल समान के रेफ्रिजरेशन के लिए किया जाएगा, जिस से की प्रदूषण कई मात्रा में कमी आएगी। माना जा रहा है की इन ट्रायल ट्रक्स से 1.6 टन तक का कार्बन डाइऑक्साइड, 27 किलो ग्राम नाइट्रोजन ऑक्साइड और 2 किलो ग्राम तक का अन्य पदार्थ बचाया जा सकेगा, जो की आम तौर पर रेफ्रिजरेशन यूनिट में इस्तेमाल होता है।
सेंसबरी में सॅस्टेनेबिलिटी के हेड श्री पॉल क्र्यू ने जानकारी दी की, "यह ट्रायल रीटेलर के लिए साल 2020 तक कार्बन एमिशन्स को 30 प्रतिशत तक कम करने में मदद करेगा, पिछली 2005 की बेसलाइन के विपरीत।" डियरमेन के साथ यह ट्रायल एक अलग पहल है जो की हमने प्रस्तावित की है अपने लक्ष्य को पाने के लिए।" उन्होंने अपने एक वक्तव्य में कहा। उनका ज़ीरो एमिशन सिस्टम वाकई शानदार है, और लिक्विड एयर इंजन पर चलने का मतलब है की हमारी कूलिंग जो है वह पतली हवा पर चल रही है।"
यदि रेफ्रिजरेशन यूनिट को इसी तरह मॉडिफाइ कर दिया जाए लंडन के सभी रेफ्रिजेरटेड कमर्शियल व्हीक्ल्स में तो शहर में सालाना 49,125 टन कार्बन डाईऑक्साइड और 22 टन अन्य पदार्थ को कम किया जा सकता है। यह ऐसा ही है जैसे आप शहर से 300,000 कार्स को सड़कों से हटा देते हैं। इस के अलावा, सेंसबरी आर-425ए को एक अन्य कूलिंग एजेंट के तौर पर भी टेस्ट कर रही है अपने अन्य 3 ट्रक्स में इसी प्रॉजेक्ट "क्लीन कोल्ड" के तहत, जिससे की शहरी ट्रांसपोर्ट की वजह से हो रहे पर्यावरण के नुकसान की भरपाई की जा सके।