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बजट 2017: वाणिज्यिक वाहन उद्योग क्या उम्मीद करनी चाहिए?

Published On Jan 27, 2017By Mukul Yudhveer Singh

बजट 2017: कमर्शियल व्हीकल इंडस्ट्री की क्या अपेक्षा होनी चाहिए?

मशहूर मोटिवेशनल स्पीकर श्री डेव रेम्से ने एक बार कहा था की, "बजट का मतलब है अपने पैसों को कहाँ खर्च करना है इस के लिए दिशा-निर्देश तय करना, ना की बिना सोचे समझे खर्च करने के बाद सोचना की वह कहाँ गये।" बिल्कुल उसी तरह बजट वास्तव में कुछ नहीं है सिवाय आने वाले भविष्य में एक व्यक्ति के होने वाले खर्चों के आंकलन के। और यहाँ श्री डेव रेम्से द्वारा कही गयी यह बात किस भी व्यक्ति अथवा संस्था पर बराबरी से लागू होती है। वहीं जब बात आती है भारत जैसे विशाल देश की तो इस तरह के कार्य को अमल में लाना वास्तव में काफ़ी महत्त्वपूर्ण बन जाता है। आख़िरकार, यह देश बना है 1.25 बिलियन भारतीयों से और टेक्स के रूप में हमारे द्वारा दिए गये पैसे का सरकार किस तरह उपयोग कर रही है यह जानना ज़रूरी है।

हालाँकि, देखा जाए तो बजट आने वाले साल की वित्तीय योजनाओं में सभी तत्वों को कवर करता है, परंतु साल 2014 में आए बजट में भारतीय ऑटो इंडस्ट्री, खास कर कमर्शियल व्हीकल इंडस्ट्री के सेगमेंट के लिए कुछ खास उत्साहजनक नहीं रहा। इस सेगमेंट में ट्रक्स, बसेस व देश में मौजूद अन्य कमर्शियल व्हीक्ल्‍स आते हैं जिन का काम मुख्य रूप से पूरे भारत में फल सब्ज़ी, कपड़े, अनाज व अन्य रॉ मटेरियल्स को ट्रांसपोर्ट करने का ज़िम्मा रहता है। साथ ही जहाँ बात आती है देश में महँगाई के उतार चढ़ाव की, तो इस में हमेशा से ही ट्रांसपोर्टेशन इंडस्ट्री एक बड़ा योगदान रहा है। कुल मिलकर सीधा गणित यह कहता है की यदि फ्रेट रेट्स बढ़ेंगे तो खद्य पदार्थ व अन्य चीज़ों के दाम भी उस से अछूते नहीं रहेंगे।

फ्लीट ओनर्स, ओईएम्स, व्यक्तिगत ट्रक और बस मालिकों के लिए तो ऑटो बजट इतना महत्त्वपूर्ण होता है की उनमें से कई तो अपने बिज़नेस प्लांस को तभी अंतिम रूप देते हैं जब अंतिम बजट विश्लेषण उन के सामने होता है। यह सब देखते हुए वर्तमान साल गंभीर महत्त्व रखता है, क्योंकि ट्रक्स में अनिवार्य एयर कंडीशनिंग और भारत स्टेज 4 (बीएस 4) एमिशन नॉर्म्स को लागू किया जाएगा जिन से देश में बसेस और ट्रक्स का महँगा होना निश्चित है। एक ओर एक्सपर्ट्स का मानना है की गूड्स सर्विस टेक्स (जी एस टी) के लागू होने से व्यक्तिगत ट्रांसपोर्टेर्स और ट्रांसपोर्टेशन एजेन्सीस को कुछ राहत मिलेगी, परंतु वहीं दूसरी ओर अभी ऐसा कुछ कहना या इस पर कोई टिप्पणी करना जल्दबाज़ी होगी। तो चलिए देखते हैं की भारत में ट्रकिंग से जुड़े लोगों को इस बजट से क्या-क्या अपेक्षाएँ हैं।

टेक्सस में कटोती

भारत सरकार ने पहले ही देश में पुराने व्हीक्ल्स के अस्तित्व को समाप्त करने के प्रति अपने इरादे साफ ज़ाहिर कर दिए हैं। अनगिनत रिसर्चस ने पुराने हेवी व्हीक्ल्स को सबसे ज़्यादा प्रदूषण फैलाने व सबसे ज़्यादा फ़्यूल डकारने के जुर्म में कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। इस फ़ैसले का स्वागत करने के अलावा किसी के पास कोई चारा नहीं हो सकता, क्योंकि यह निर्णय देश हित में लिए गया है। परंतु, उन ट्रक मालिकों का क्या जिनकी रोज़ी रोटी का ज़रिया वो पुराना ट्रक ही है और उन के पास नया ट्रक खरीदने के पैसे भी नहीं हैं?

ऐसे मामलों में सरकार उन पुराने ट्रक मालिकों को टेक्सस में छूट देकर उन की मदद कर सकती है, जिस में एक्साइस ड्यूटी भी शामिल है। साथ ही, जैसे की एयर कंडीशन युक्त बीएस 4 ट्रक्स महँगे होंगे, तो टेक्सस में छूट की नीति निश्चित रूप से ट्रक ड्राइवर्स व अन्य कमर्शियल व्हीकल मालिकों का मनोबल बढ़ाने में कारगर साबित होगी। और साथ यह कदम उन्हें भारत को बेहतर बनाने के लिए प्रोत्साहित भी करेगा। ऐसा इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि यहाँ ट्रक ओनर्स और ड्राइवर्स को अपने नये हेवी ट्रक्स के लिए एक से दो लाख रुपये तक टेक्स के रूप में देना होंगे।

समर्पित फ्रेट हाइवेज़ और कॉरीडोर्स

हम सभी जानते हैं की देश में ट्रक और पिक अप चलाने वाले कमर्शियल व्हीकल ड्राइवर्स की क्या दशा है और उन के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। देश के कई राज्यों में कमर्शियल व्हीक्ल्स का प्रवेश एक तयशुदा समय में वर्जित होता है। इस तरह के हालात ड्राइवर्स को रात में व्हीक्ल्स चलाने पर विवश करते हैं, जिस का उन की सेहत पर बुरा असर पड़ता है अंततः इस से दुर्घटनाएँ होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। ज़्यादा से ज़्यादा समर्पित फ्रेट हाइवेज़ और कॉरीडोर्स से ना सिर्फ़ भारत की ट्रांसपोर्ट कम्यूनिटी का भला होगा बल्कि इस से शहरों के अंदर लंबे लंबे ट्रेफिक जाम होने के मसलों से भी निजात मिलेगी। इस से एक्सीडेंट्स की वारदातों में भी भारी कमी देखने को मिलेगी।

इंटरेस्ट रेट्स

प्राइवेट कार मालिकों और ऑटो प्रेमियों की तुलना में कमर्शियल व्हीकल ओनर अपना व्हीकल, ट्रक या बस, केवल सुविधा के लिए नहीं खरीदते बल्कि अपनी रोज़ी रोटी चलाने के लिए खरीदते हैं। उन का व्हीकल उन के व उन के परिवार वालों के लिए कमाई का मध्यम होता है। कमर्शियल व्हीक्ल्स पर ब्याज़ दरों (इंटरेस्ट रेट्स) में कमी आने से देश में मौजूद व्यक्तिगत ट्रक और कमर्शियल व्हीकल मालिकों को बड़ी राहत प्राप्त होगी। ऐसे करने से लोगों की वित्तीय समस्याओं में कुछ हद तक कमी आएगी, क्योंकि यहाँ वह पहले ही अनिवार्य एसी और बीएस 4 मानकों वाले ट्रक्स के महँगे दाम चुकाने को लेकर जूझ रहे होंगे। साथ ही इस कदम से सरकार को पुराने ट्रक स्क्रेप करने की पॉलिसी के निर्णय को लागू करने में भी सहायता मिलेगा। वर्तमान में इंटरेस्ट रेट्स 10 प्रतिशत प्रति वर्ष से शुरू होकर 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक पहुँच जाती है उन के व्यक्तिगत क्रेडिट स्कोर के आधार पर।

इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड ट्रक्स आर बसेस पर सब्सिडी

देश में मौजूद बहुत से कमर्शियल व्हीकल मॅन्यूफॅक्चरर्स ने अपने द्वारा डेवलप किए गये हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक ड्राइव पावर ट्रेन्स से संचालित ट्रक्स व बसेस को प्रदर्शित किया है। और तो और, देश के दिग्गज कमर्शियल व्हीकल निर्माता टाटा मोटर्स ने मौजूदा बजट सेशन्स के शुरू होने से पहले, देश की पहली हाइड्रोजन फ़्यूल सेल द्वारा संचालित बस को शोकेस किया है। इस में कोई दो राय नहीं है की इस तरह के व्हीक्ल्स से एक तरफ प्रदूषण को लगाम कसने में मदद मिलेगी वहीं दूसरी ओर भारत की फ़ॉसिल फ़्यूल्स पर निर्भरता भी कम होगी। मगर फिर भी हाइब्रिड, इलेक्ट्रिक और फ़्यूल टेक्नोलॉजी पर काम करने वाले कमर्शियल व्हीक्ल्स उन की भारी कीमतों के चलते आम आदमी की पहुँच से बाहर ही रहेंगे।

इस तरह के व्यकाल्पिक ईंधन पर चलने वाले ट्रक्स और बसेस को उपयोग में लेने में यदि कोई व्यक्ति, स्टेट ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग्स (एस टी यू) या एजंसीज़ इच्छुक हैं और भारत सरकार उन पर बढ़िया सब्सिडी प्रदान करने को तैयार है, तो इस से देश में कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी आएगी व साथ ही फ़ॉसिल फ़्यूल पर निर्भरता में भी कमी आएगी। गौर तलब है की इस तरह के व्हीक्ल्स की कीमत भारतीय एक करोड़ रुपये या उस से ज़्यादा से कम नहीं होगी।

जीएसटी का अमल में आना

देश में मौजूद एक्सपर्ट्स का मानना है की गूड्स सर्विस टेक्स (जी एस टी) इस वित्तीय वर्ष के दौरान ही लागू किया जाएगा। जीएसटी बिल, जो की 1 जुलाइ 2017 से अमल में आएगा, ने अभी तक मिली जुली प्रक्रियाएँ बटोरी हैं। इस से उम्मीद जताई जा रही है की इस कदम से देश भर में वर्तमान टेक्स ढाँचे में बेहतरी आएगी। परंतु बिना किसी विश्लेषण के केवल बड़ी बड़ी उम्मीदें लगाना भी समझदारी नहीं है। बहुत से फ्लीट ओनर्स, ओईएम्स किसी भी बड़ी घोषणा करने से पहले, हाल फिलहाल सब्र से काम लेते हुए जीएसटी के लागू होने के बाद की प्रक्रिया का इंतेज़ार कर रहे हैं। भारत का ट्रक्स और बसेस चलाने वाला समुदाय बदलावों के इस मुश्किल दौर में सहानुभूति की उम्मीद कर रहा है। पुराने ट्रक्स की स्क्रेपइंग, अनिवार्य एयर कंडीशनिंग व बीएस 4 एमिशन नॉर्म्स के लागू होने से देश के ट्रांसपोर्टेर्स के लिए लागत और खर्च के रूप में नई मुश्किलें खड़ी हो रही हैं, और यहाँ उम्मीद की किरण के रूप में उसे जीएसटी ही दिखाई दे रहा है।

निष्कर्ष

भारत की ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री से जुड़ी विभिन्न संस्थाएँ निश्चित तौर पर देश का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। बढ़ रही महँगाई दरों सहित बहुत सी चीज़ें का सीधा संबंध इंडियन ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री से है। इसलिए बजट कॉपी को फाइनल करने से पहले इस तरह की संस्थाओं के पॉइंटस को भी यदि विचार किया जाए तो यह बेहतर जीडीपी हासिल करने का एक सीधा व सरल उपाय हो सकता है।

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