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अशोक लीलेंड: मार्केटिंग का महारथी?

Published On Nov 11, 2016By Mukul Yudhveer Singh

अशोक लीलेंड ने अपना पहला डेमिंग प्राइज़ अपने नाम कर के भारत का गौरव में विश्वस्तर पर चारचाँद लगाए हैं, और इस के साथ ही कमर्शियल व्हीकल मेकर अपने लिए प्रसिद्धि पाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा है व लगातार खबरों में बना हुआ है। देश के कई अख़बारों में आज कंपनी द्वारा अर्जित की गयी 'पहलों' व कीर्तिमानों का ब्योरा दिया गया है, जिन में भारत की पहली डबल डेक्क़र बस से लेकर हाल ही में भारतीय उपमहाद्वीप पर उतरी गयी उसकी इलेक्ट्रिक बस भी शामिल है। ये अवसर बेहद असाधारण है जब की देश के कमर्शियल व्हीकल मेकर भारत की एक ऐसी कंपनी बन कर उभरी है जिस को इस ख़ास अवॉर्ड से नवाज़ा गया है।

यहाँ एक बात गौर करने की है, इस अवॉर्ड को प्राप्त करने के बाद अशोक लीलेंड जापान के बाहर यह सम्मान पाने वाली पहली गैर-जापानी कमर्शियल व्हीकल कंपनी है, जो की अपने आप में सोने पर सुहागा है।

हम जब की उसके इस उत्साह में भरपूर साथ देने की तैयारी कर रहे है, तो साथ ही आइए देखते हैं अशोक लीलेंड के वो 'पहलें' जिनका वह दावा करता है उस ने भारत के लिए कीं।

भारत की पहली डबल डेक्कर बस 'टाइटन' का लॉंच

आज़ादी के बाद से देश की जनसंख्या बड़ी तेज़ी के साथ बढ़ रही थी. देश के कई महानगर ऐसे लोगों से भरे पड़े थे जो की काम की तलाश में शहरों की तरफ़ कूच कर रहे थे. इस के चलते, प्रशासन पर भारी संकट आन पड़ा था, जिस में से एक इन सभी लोगों को पर्याप्त मात्रा में पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रदान करवाना भी था। इस के बाद सन् 1967 में अशोक लीलेंड ने अपनी 'टाइटन' बस को महानगरों की सड़कों पर उतारा, जो की देश की पहली डबल डेक्कर बस थी, और उस के बाद की कहानी का तो इतिहास गवाह है।

पहली कंपनी जिस ने कमर्शियल व्हीक्ल्स को पावर स्टियरिंग और एयर ब्रेक्स से अवगत कराया

जिन लोगों ने कमर्शियल व्हीक्ल्स, पावर स्टियरिंग या पावर स्टियरिंग के बिना, ड्राइव किए हैं, उन्हें अच्छी तरह पता है की ड्राइविंग के दौरान पावर स्टियरिंग क्या अंतर पैदा कर सकता है, ख़ास कर जहाँ बात आती है हेंडलिंग और सेफ्टी की। अशोक लीलेंड ने सन् 1969 में ही अपने कमर्शियल व्हीक्ल्स में पावर स्टियरिंग और एयर ब्रेक्स की शुरुआत कर दी थी, और अन्य मॅन्यूफॅक्चरर्स के लिए कमर्शियल व्हीकल सेगमेंट में सेफ्टी को लेकर नये स्टॅंडर्ड की स्थापना की थी। यह देश के पहले कमर्शियल व्हीक्ल्स थे जिन में पावर स्टियरिंग और एयर ब्रेक्स का फीचर दिया गया था।

टॉरस - भारत का पहला मल्टी एक्सल ट्रक

हालाँकि, साल 2001 के बाद से देश मल्टी एक्सल ट्रक्स की तरफ़ शिफ्ट होना शुरू हो गया था, लेकिन अशोक लीलेंड ने सन् 1979 में ही भारत को इस के पहले मल्टी एक्सल ट्रक्स से अवगत करा दिया था। इस में कोई दो राय नहीं है की टॉरस नामक यह ट्रक अपने समय से काफ़ी आगे की सोच थी, लेकिन फिर भी इस ने देश की ट्रक मार्केट में आने वाले समय के मल्टी एक्सल ट्रक्स के लिए एक प्लेटफॉर्म की स्थापना कर दी थी।

चीता का लॉंच, भारत की पहला रियर इंजन बस

भारत में 1970 के दशक में मौजूद बस ड्राइवर्स की ओर से अकसर ड्राइविंग के दौरान होने वाली असुविधा की शिकायतें आती थीं, जो की इंजन के गर्म हो जाने के कारण होती थी, जिस की वजह से ड्राइवर के केबिन में काफ़ी गर्मी रहती थी। अशोक लीलेंड ने इस बात को समझा और चीता का आविष्कार किया, जो की थी, भारत की पहली बस जिस का इंजन पीछे के हिस्से में लगा हुआ था। कंपनी का दावा है की सिर्फ़ एक चीज़ जिस के बारे में ड्राइवर्स शिकायत करते थे चीता बस के केबिन में, वो थी इंजन की आवाज़, जो की वह सुन नहीं पाते थे उसके पीछे लगे होने के कारण।

भारत की पहली वेस्टीब्युल बस

देश के बढ़ती आबादी की चिंता के साथ साथ भारत में बड़े पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन व्हीकल की ज़रूरत महसूस होने लगी थी। जहाँ एक तरफ डबल डेक्कर बसेस का चलन पुराना हो चुका था, वहीं अशोक लीलेंड ने साल 1982 में, एक कदम आगे चलते हुए घरेलू मार्केट के लिए भारत की पहली वेस्टीब्युल बस का निर्माण किया। यह एक और सबूत है इस बात का की अशोक लीलेंड अपने कॉंपिटिटर्स से हमेशा आगे रहा है, और हमेशा कुछ ऐसा नया करने की जुगत में लगा रहता जिस से आगे निकलना उनके लिए मुश्किल होता है।

भारत की पहली सीएनजी बस - ग्रीन इंडिया की तरफ अग्रसर

साल 1997 ऐसा वर्ष रहा जब दुनिया भर के साइंटिस्ट्स ने ग्लोबल वॉरमिंग को विश्व के लिए बड़ा ख़तरा माना और उसे गंभीरता से लेना शुरू कर दिया। अख़बार, मॅगज़ीन्स और सोशियल वर्कर्स ने बढ़ते पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स के इस्तेमाल के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था। और फिर पेश की गयी पहली सीएनजी बस। आने वाले कुछ वर्षों में कई प्रदेशों की सरकारों ने इन बसेस के ऑर्डर देना शुरू कर दिए। और इस के साथ ही यह एक और पहल थी अशोक लीलेंड की ओर से जो की बेहद कामयाब रही।

भारत की पहली हाइब्रिड इलेक्ट्रिक बस

अशोक लीएलएंड ने ऑटो एक्स्पो 20002 में यह साबित कर दिया की आप क्या करने के योग्य हो, ये सिर्फ़ दर्शाकर भी, आप अपने ब्रांड के लिए नई उँचाइयाँ प्रदान कर सकते हो। विख्यात कमर्शियल व्हीकल मॅन्युफॅक्चरर ने भारत की पहली हाईब्रिड इलेक्ट्रिक बस को एक्स्पो में शोकेस की और यह सुनिश्चित किया की जनता की ओर से इस को इस के हिस्से का पूरा पूरा ध्यान प्राप्त हो।

भारत की पहली हाईब्रिड सीएनजी प्लग इन बसेस

साल 2010 को आसानी से अशोक लीलेंड के लिए सुनहरे सालों में से एक गिना जा सकता है। कमर्शियल व्हीकल मेकर ने भारत की पहली हाईब्रिड सीएनजी प्लग इन बस को भारत में हुए ऑटो एक्स्पो 2010 में डिसप्ले किया था। उस के बाद ऐसी कई सारी बसेस का इस्तेमाल बाद हुए कॉमन वेल्थ गेम्स में किया गया। कंपनी के लिए अपने प्रॉडक्ट्स को मार्केट करने का यह एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म रहा।

भारत का पहला 37 टन का हॉलेज ट्रक

विश्वभर में भारत को लगातार तेज़ी से बढ़ने वाली इकॉनोमी वाले देशों की श्रेणी में रखा जा रहा था। देश के फ्लीट ओनर्स को ऐसे समय में ज़रूरत थी ऐसे बड़े ट्रक्स की जो की ज़्यादा माल ढोने में सक्षम हों, परंतु ऐसे ट्रक्स उस समय के कमर्शियल व्हीकल मेकर्स के पास नहीं थे। इस तरह, अशोक लीलेंड ने देश का अपना पहला 37 टन हॉलेज ट्रक यू3723 लॉंच किया।

भारत का पहला यूरो 6 ट्रक

दुनिया भर की सरकारें ग्लोबल वॉरमिंग को लेकर बेहद गंभीर उपाय अपना रहीं हैं। देश में पंद्रह वर्षों से ज़्यादा से चल रहे है। कमर्शियल व्हीक्ल्स पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की माँग ज़ोरों पर है और देश के ट्रक ओनर्स को परेशान किए हुए। कंपनी ने इस अव्यवस्था को अपने हाथ में लेते हुए कंपनी ने वर्ष 2016 में अपना नया ट्रक कॅप्टन 4940 जारी किया। यह ट्रक ना सिर्फ़ यूरो 6 के नॉर्म्स के साथ कंप्लाइ करता है बल्कि अपने साथ मेड इन इंडिया का लेबल भी लाता है।

भारत की पहली इलेक्ट्रिक बस

अशोक लीलेंड ने हाल ही चेन्नई के एक इवेंट में भारत की पहली 100 प्रतिशत बिजली से चलने वाली बस तैयार की है। यह नई बस एक बार फिर से मेक इन इंडिया पहल को प्रोत्साहित करती दिखाई देती है और साथ ही इस बात पर भी ज़ोर देती है की यह भारत में ही डिज़ाइन और डेवेलप की गयी है। यह ज़रूर देश के लोगों में गौरव का प्रतीक बनेगी, जिस से की उनको 'मेड इन इंडिया' बसेस चलाने का गौरव हासिल होगा।

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